झाबुआ जिला प्रमुख ब्यूरो चीफ चंद्रशेखर राठौर
झाबुआ कलम से लिखी एक सोचने वाली बात की नगर की गलियों में घूमते हुवे नगर के भव्य मंदिर पर पहुँच गया। मन्दिर के उदघाटन की तैयारियां अंतिम दौर में था सोचा समाजजनों से थोड़ी चर्चा कर उदघाटन की थोड़ी रूप रेखा समझ लू। बातों ही बातों में बात फिर से समाजसेवी पर आ गई और समाज के लोग ही बोलने लगे कि वनी समाज सेवी ने समझाओ यार थमारो दोस्त की जद देखो जद नेतागिरी करे ने समाज का काम मे भी माथा फोड़ी करे। मैने पूछा क्या हो गया य्यार बढ़िया आदमी है। खूब बढ़िया है केवा रो , मैने पूछा हुवा क्या ऐसा ? कई नि यार जद कदी भी समाज का काम पड़े नी तो समाज वाला एक समिति वनावे ओर उन सभी लोग के दाइत्व देवे की यो काम वी करेगा समिति बेठी ने तय करे है। उना बाद सबको अपना अपना काम समिति बना कर दे दिया जाता है। फेर वनी समाजसेवी के भी उसका काम दे दिया। हमारी अलग एक प्रशानिक समिति बनी जिसको समाज ने जुलूस में परेशानी बन रहे बिजली के तार ऊंचे करवाने के निर्देश दिए थे हमने विभाग ने विधिवत आवेंदन देकर अधिकारी से निवेदन भी कर दिया कुछ दिन बाद समाज की समीक्षा बैठक हुई कि किस समिति ने उसके दिए कार्यो में कितनी प्रगति की है । बात बिजली तार ऊंचे करने पर आई तो समाजसेवी बीच मे कूद गया और अपनी झांकी मंडप दिखाने के लिए बोल पड़ा कि मेरी जिले के बड़े नेता से बात हो गई है काम हो जाएगा अब जो काम हमारा था वो समाजसेवी ने नेतागिरी के चक्कर मे खुदने ओढ़ लिया , आयोजन के समीप आने तक भी जब काम नही हुवा तो समाज सेवी से पूछा गया तो हाथ पैर झटख के निकल गया तब कही फिर हमने जा कर साब के हाथ जोड़े निवेदन कर इस बड़े आयोजन सहयोग की मांग की तब जाकर अधिकारी महोदय ने ठेकेदार को भेज कर काम करवा दिया । मैने पूछ लिया इसने क्या समाज का काम था उससे नही हुवा तो आप ने करवा लिया , समाजजन बोले यही तो बात है ये उसको सोचना था कि समाज का काम था हो गया लेकिन उसको ऐसी मिर्ची लगी कि विभाग के अधिकारियों को चमकाने लग गया की मेरे कहने पर काम नही किया मेरी इज्जत खराब कर दी और जिले के नेताओ को फोन करके अधिकारी के ट्रांसफर करवाने की धमकी देने लगा , इतना नही अधिकारी को धमकी भी दे डाली की एक वीडियो बना कर दो की मेरे इन नेताओं के कहने पर मैने काम किया वरना रवाना करवा दूँगा अब बताओ ऐसा कौंन करता है , समाजसेवी नाम का बाकी इतना बढ़ा सनकी है कि उसका नाम नही हो फिर तो वो पागल हो जाता है , समाज मे कोई इज्जत नही करता इसलिए दूसरे लोगो से अपनी झूठी तारीफ करवा कर समाजसेवी बनता है। एक बाद एक मामले सामने आए तो मुझे चकरी आने लगी कि जिसको अपन समाज सेवी समझ रहे है वो फर्जी समाजसेवी है । जो अपने नाम के लिये धर्म और धार्मिक कार्यो को भी नही छोड़ता मैने सोचा अच्छा हुवा चुनाव आ गए कम से कम समाजसेवी का काला चेहरा सामने तो आया नि तो भिया हम तो समाजसेवी को देव पुरुष समझ रहे थे । चलो खेर अपने क्या अपन भी वाहन उठा कर निकल गये सोचा चुनावी के समीकरण है लोग कुछ भी बोलते है फिर कल किसी सार्वजनिक स्थान या दुकान पर बैठकर ओर कभी राजनीति कि चर्चा करेंगे। अभी समजजन की बात थी येसा कई ओर चेहरा सामने आवेगा आप को तो पता ही होगा की वी कुन कुन वेगा। चलो फिर मिलेंगा तो बात करेंगे। जय राम जी की।
























