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फांसी से पहले भगत सिंह के अंतिम पत्र का अंश |

विक्रम सिंह राजपूत की रिपोर्ट

स्वाभाविक है, कि जीने की इच्छा मुझमे भी होनी चाहिए, मै इसे छुपाना नहीं चाहता. लेकिन मै एक शर्त पर जिन्दा रह सकता हूँ, कि मै कैद हो कर या पाबंद हो कर जीना नहीं चाहता…..

मेरा नाम हिदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है….दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फांसी पर चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं, अपने बच्चो को भगत सिंह बनने की आरजू किया करेगी और देश की आजादी के लिए क़ुरबानी देने वालो की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि उस क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी!

आज ही के दिन आजादी की जंग में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने अपने प्राणों की आहुति दी थी…..

……….यह देश आपका ऋणी था, है और रहेगा…हमे गर्व है कि हमने उस धरती पर जन्म लिया, जिसे आपने अपने लहू से सींचा है।

…. सादर नमन

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